Azolla Production
Supper Feed for Animals- Azolla Because of Rich Source of Protein and Essentials Minerals
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भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ लगभग दो तिहाई किसान लघु, सीमांत व भूमिहीन हैं, वहां कृषि के पश्चात् पशुपालन को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। विगत वर्ष में किसान अपनी कुल भूति का एक प्रतिशत पशुओं के हरे चारे की व्यवस्था के लिए उपयोग में लाते थे परंतु आज ऐसा नहीं है। सीमित जोत उपलब्धता देर से तैयार होने वाली किस्मों का चयन करना, मोटे अनाज वाली किस्मांे के स्थान पर व्यावसायिक फसलों का चयन करना, हरे भरे चारे का विलुप्त होना चारे वाली फसलों को उगाने की अनुकूल परिस्थितियों का न होना। वर्षभर हरे चारे की उपलब्धता नहीं होने के प्रमुख कारण है।
पशु उत्पादन तथा मुर्गी पोल्ट्री उत्पादन की कुल लागत का 60-65 % खर्च केवल पशु आहार पर होता है। इस बढ़ती लागत में लघु सीमांत व भूमिहीन किसानों को पशुपालन के प्रति आकर्षण घटा दिया है। अतः अधिक मंहगे दानों के विकल्प की महत्ती आवश्यकता है जो कम लागत व कम पानी में घर आंगन में लगा सकते है। अजोला एक हरे सोने की खान के रूप में जाना जाता है। अजौला पानी के ऊपर प्राकृतिक रूप से तैरने वाली सुन्दर यह त्रिकोणिय है तथा व्यक्तिगत रूप से पानी की सतह पर है।
अजौला प्रोटीन से भरपूर है: कुल प्रोटीन 25-30ः होता है अजोला आहार की पाचन क्षमता को बढ़ाती है। अजोला प्रजनन में सस्ते उत्पादन की संभावना बनाता है और सबसे सस्ता और प्रचुर मात्रा में संभावित प्रोटीन स्त्रोतों के रूप में माना जाता है।
यह अपख्यानिक जड़ों के सहयोग से पानी के ऊपर तैरता रहता है। अजोलों के पौधे में मुख्य तने के साथ अनेक शाखायें निकली रहती है और पूरा पौधा लगभग त्रिभुजाकार आकृृति में दिखाई देता है। इसकी सभी शाखायें नीचे से ऊपर की ओर क्रमशः छोटी होती जाती है। अजोले की पत्ती का ऊपरी भाग नीली हरित शैवाल के साथ सहजीवी के रूप में रहता है जो कि इसी से मिलते जुलते दूसरे प्रमुख सहजीवी राइजोबियम के समान है जो दलहन फसलों की जड़ गं्रथियों में मौजूद होता है दलहन फसलों की जड़ ग्रंथियों की भांति नील हरित शैवाल भी वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर अपने पौषक पौधे अजोले की पत्तियें में उपलब्ध रूप से संचित करती है।
अजोला उत्पादन के लिए पर्यावरणीय आवश्यकताएं:-
1. अजोला गर्म समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तालाबों, खाई और आर्द्रभूमि में पाया जाता है।
2. यह पानी या गीली मिट्टी में उगाया जाता है, तथा सूखी परिस्थितियों में यह कुछ ही घटों में भर जाता है।
3. अजोला 3.5-90 पी एच की बीच रह सकता है लेकिन इसके लि इष्टतम पी एच 4.5-7.0 होती है।
4. अजोला के लिए इष्टतम तापमान 18-28 degree C के बीच होता है।
5. लवणता बढ़ने पर अजोला का विकास कम हो जाता है।
6. अजोला का विकास पूर्ण रूप से आंशिक छाया (सूर्य प्रकाश) (100-50 %) के बीच अधिक होता है।
7. तापक्रम - 28-30 Degree C
8. आपेक्षित आर्द्रता - 68-80 %
9. पानी - 10-20 cm
अजोला उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री:-
अजोला उत्पादन के लिए 2.0×1.5×0.5 आकार की क्यारी बनाई जाती है।
आसपास के पेड़ों की जड़ों और पानी के रिसाव को रोकने के लिए पाॅलीथिन शीट बिछाई जाती है।
लगभग 10-15 किलो मिट्टी क्यारी मंे समान रूप से बिछाई जाती है।
10 किलो पानी में 2 किलो गाय का गोबर और 05 ग्राम सुपर फाॅस्फेट तथा 1.5 ग्राम क्यूरेट आॅप पोटाश मिलाकार घोल बनाया जाता है।
जल स्तर को 10 सेमी. तक पहुँचाने के लिए पानी डाला जाता है।
500 ग्राम से 1 किलो अजोल प्रत्येक गड्ढ़े में डाली जाती है।
10-15 दिन में अजोला तेजी से वृद्धि करती है तथा 500-600 ग्राम अजोला प्रतिदिन काटी जा सकती है।
5 दिन में 20 ग्राम सुपर फाॅस्फेट और गोबर का मिश्रण डाला जाना चाहिए।
सुक्ष्म पोषक तत्वों का मिश्रण (मैग्नीशियम, लोहा, तांबा) को साप्ताहिक अंतराल में डाला जाना चाहिए यह अजोला में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाता है।
अजौला की उत्पत्ति:-
अजौला की उत्पत्ति अफ्रीका, एशिया, चाईना से जापान, भारत, फिलीपिंस व आस्टेªलिया के कुछ भागों से हुइ है।
अजौला परिवार एजोलेसी और पेट्रीडोफाइटा से संबंधित एक मुफ्त तैरने वाली ताजा पानी का फर्न है। जिसे फीदरड़ मोस्क्योटोफर्न एवं वाटर वेलवेट आदि नामों से जाना जाता है।
अजौला क्या है:-
अजौला जल के ऊपर मूल रूप से तैरने वाली एक फर्न है, जिसका रंग बिल्कुल हरा होता है यह छोटे-छोटे समूहों में पानी के ऊपर तैरती है। अजौला की कई प्रजातियाँ हैं, किन्तु भारत में केवल अजौला पिन्नाटा पायी जाती है यह किस्म काफी हद तक गर्मी सहन कर लेती है।
अजौला का पशुपालन में महत्व:-
अजौला एक जैवउर्वरक एवं पशुपालन में एक महत्वपूर्ण खाद्य घटक है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक पायी जाती है ताकि कैल्शियम की मात्रा कम पायी जाती है। जब डेयरी पशुओं को अजोला वाणिज्यिक फीड के साथ खिलाया जाता है तो दूध की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा मवेशियों के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अजौला आहार की पाचन क्षमता को बढ़ाती है।
गर्मी के महीनों में (फरवरी-मई) में यह दूध की पैदावार को 10-15ः तक बढ़ा देता है। अजौला से दूध में पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि होती है। दूध में प्रोटीन, कार्बोहाइडेªट सामग्री और अन्य घटकों की तुलना में कैरीटीनाॅयड, बाॅयोपाॅलिमर, प्रोबायोटिक्स की मात्रा में वृद्धि होती है।
Harvesting of Azolla
अजोला की कटाई टेª में करनी चाहिए, जिससे पानी निकालने के लिए 1 वर्ग सेंटीमीटर जाली के आकार के छेद हो। अजोला के साथ टेª को बाल्टी में रखा जाना चाहिए, पानी से आधी भरी होना चाहिए।
गोबर की गंध को दूर करने के लिए अजोला को धोना चाहिए।
धुलाई छोटे टेªलेट को अलग करने में मदद करते है जो ट्रे से निकलते है।
बाल्टी में पानी के साथ पौधों को वापस डाला जा सकता है।
इस प्रकार एकत्र किए गये ताजा अजोला को पधुधन को खिलाने के लिए 1ः1 अनुपात में नियमित रूप से खिलाने की सलाह दी जाती है।
अजोला खिलाने की मात्रा:-
1. भेड़ व बकरिया - 200 से 250 ग्राम/प्रतिदिन
2. मुर्गियां - 30 से 50 ग्राम/प्रतिदिन
3. गाय व भैंस - 2 से 2.5 किग्रा/प्रतिदिन
अजोला खिलाने का तरीका:-
अजोला को खिलाने के लिए 1 किलो दाने में 1 किलो अजोला मिक्स करके पशुओं को खिलाते है। इससे 15 से 20 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ 20-25 प्रतिशत पशुओं के लिए दाना खरीदने में बचत होती है। साधारण दाना खाने वाली मुर्गियों की अपेक्षा अजोला दर अधिक पाई गई। इसके अलावा अड़ा यार्क में वृद्धि एक अडे के रंग में ग्लोसी पाई गई।